Swati Sharma

Add To collaction

लेखनी कहानी -07-Nov-2022 हमारी शुभकामनाएं (भाग -26)

हमारी शुभकामनाएं:-

विवाह की प्रथा:-

                     आज  भूमिका के ताऊजी की लड़की का विवाह था। अतः हमेशा की भांति आज भी भूमिका के प्रश्नों की झड़ियां लगीं हुई थी। उसका प्रश्न मां से यह था की विवाह क्या होता है? क्यों हमें विवाह करना आवश्यक है? विवाह के क्या मायने होते हैं? मां ने उसे उसके प्रश्नों के उत्तर देना आरंभ किया। उन्होंने उसे बताया -
                     विवाह का अर्थ समाज में प्रचलित एवं स्वीकृत विधियों द्वारा स्थापित किया जाने वाला दांपत्य संबंध और पारिवारिक जीवन भी होता है। इस संबंध से पति पत्नी को अनेक प्रकार के अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते हैं। इससे जहाँ एक ओर समाज पति- पत्नी को कामसुख के उपभोग का अधिकार देता है, वहाँ दूसरी ओर पति- पत्नी तथा संतान के पालन एवं भरणपोषण के लिए बाध्य करता है। संस्कृत में \'पति\' का शब्दार्थ है पालन करने वाला तथा \'भार्या\' का अर्थ है भरणपोषण की जाने योग्य नारी। पति के संतान और बच्चों पर कुछ अधिकार माने जाते हैं। विवाह प्राय: समाज में नवजात प्राणियों की स्थिति का निर्धारण करता है। संपत्ति का उत्तराधिकार अधिकांश समाजों में वैद्य विवाहों से उत्पन्न संतान को ही दिया जाता है।
                      वैयक्तिक दृष्टि से विवाह पति-पत्नी की मैत्री और साझेदारी है। दोनों के सुख, विकास और पूर्णता के लिए आवश्यक सेवा, सहयोग, प्रेम और स्वार्थत्याग के अनेक गुणों की शिक्षा वैवाहिक जीवन से मिलती है। नर-नारी की अनेक आकांक्षाएँ विवाह एवं संतान प्राप्ति द्वारा पूर्ण होती हैं। उन्हें यह संतोष होता है कि उनके न रहने पर भी संतान उनका नाम और कुल की परंपरा बनाए रखेगी, उनकी संपत्ति की उत्तराधिकारिणी बनेगी तथा वृद्धावस्था में उन्हेंसहयोगएवम सहारा देगी। हिंदू समाज में वैदिक युग से यह विश्वास प्रचलित है कि पत्नी पुरुष का आधा अंश है, एक पुरुष तक अधूरा रहता है, जब तक वह पत्नी प्राप्त करके संतान नहीं उत्पन्न कर लेता। पुरुष प्रकृति के बिना और शिव शक्ति के बिना अधूरा है।
                      विवाह का एक धार्मिक संबंध है। प्राचीन भारत में विवाह को धार्मिक बंधन एवं कर्तव्य समझा जाता था। यह भी कहा जाता है कि वैदिक युग में यज्ञ करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य था, किंतु यज्ञ पत्नी के बिना पूर्ण नहीं हो सकता था। अत: विवाह सबके लिए धार्मिक दृष्टि से आवश्यक था। \'पत्नी\' शब्द का अर्थ ही यज्ञ में साथ बैठने वाली स्त्री है।
                      विवाह का सामाजिक और नैतिक पक्ष भी महत्त्वपूर्ण है। विवाह से उत्पन्न होने वाली संतति परिवार में रहते हुए ही समुचित विकास और प्रशिक्षण प्राप्त करके समाज का उपयोगी अंग बनती है, बच्चों को किसी समाज के आदर्शों के अनुरूप ढालने का तथा उसके चरित्र निर्माण का प्रधान साधन परिवार है। यद्यपि आजकल शिशु-शालाएँ, बालोद्यान, स्कूल और राज्य बच्चों के पालन, शिक्षण और सामाजीकरण के कुछ कार्य अपने ऊपर ले रहे हैं, तथापि यह निर्विवाद है कि बालक का समुचित विकास परिवार में ही संभव है। प्रत्येक समाज विवाह द्वारा मनुष्य की गलत काम भावनाओं पर अंकुश लगाकर उसे नियंत्रित करता है और समाज में नैतिकता की रक्षा करता है।
                      भूमिका की मां ने उसे ताऊजी की लड़की के विवाह के समय विवाह के विषय में इस प्रकार कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई। उन्होंने यह भी बताया कि किसी भी समाज में मनुष्य विवाह करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है। उसे इस विषय में कई प्रकार के नियमों का पालन करना पड़ता है। जिस प्रकार भूमिका की मां ने उसे विवाह के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान की। उसी प्रकार सभी अभिभावकों को उनके बच्चों को समय - समय पर उचित जानकारी अवश्य प्रदान करनी चाहिए।

#30 days फेस्टिवल / रिचुअल कम्पटीशन

   15
8 Comments

Supriya Pathak

09-Dec-2022 09:26 PM

Shandar 🌸👍

Reply

Swati Sharma

10-Dec-2022 10:20 PM

Thank you ma'am 🙏🏻

Reply

Beutiful story

Reply

Swati Sharma

08-Dec-2022 04:32 PM

Thank you

Reply

Bahut khoob 🌺👍

Reply

Swati Sharma

17-Nov-2022 10:25 AM

Apka hardik aabhar

Reply